पर्यावरण के प्रति अचेत विश्‍व

 

प्रर्यावरण में करों विचार, इसी में है जीवनसार 

 

प्रर्यावरण रो जलुसौ: खेजडली खडाणौ  

 

संवत् सतरासौ सतियासियै, भादवा सुदी दशमी मंगलवार। 

 

बन राख्यो विश्नोइयां, खड्या तीन सौ न तेसठ नर-नर ।। 

 

- मांगीलाल विशनोई 

 

विश्व विख्यात खेजडली गांव जोधपुर जिला मुख्यालय से २२ किलोमीटर दक्षिण-पुर्व में तहसील लुणी का विशनोई बाहुल्य गांव है। आज से लगभग २७० वर्ष पुर्व यहां पर भादु, बुडीया, खोड, बिणियाल, पोटलिया, बांगदवा, गोदारा आदि गौत्र के विशनोई निवास करते थे, जो श्री जम्भेश्वर भगवान द्वारा प्रणीत २९ नियमों का हदय से पालन करते थे। 

 

इस गांव में विशनोई की चलती थी। गांव के ठाकुर विशनोई चौ. अणदोजी भादु, हरदासजी बुडिया, रामुजी, खोड की सलाह से ही गांव का शासन चालता था। गांव की सरहद में खेजडी के बहुत बडे-बडे पेद थे, क्योंकी यहां अधिकतर किसान विशनोई भाई ही थे जो पेडों को काटना तो दुर अपितु उनकी रक्षा करते थे। 

 

खेजडली के पास में ही गुडा, फिटकासनी, भगतासनी, रसीदा, पीथावास, बीरामी, रुडकली आदी गांव स्थित है, जिनमें विशनोईयों की पर्याप्त संख्या थी। एक समय की बात है, संत सुरनामजी जोधपुर पधारे। उस समय जोधपुर के शासक राजा अभयसिंह थे। उनका मंत्री गिरधदास भण्डारी था। 

 

 

राजा फुल पतासों का थाल व स्वर्ण मुद्रा लेकर संत दर्शन करने संतो के डरे में पधारे तो उनके साथ दुर्गादास चारण थे, उन्होंने, कहा कि महात्मन् महाराजा को कुछ परचा देवें और मरुधर में वर्षा करावें तो हम आपको सिध्द पुरष मानेंगे। 

 

तब सुरजनजी ने भगवान श्री जम्भेश्वर जी से प्रार्थाना की और भगवान ने वर्षा शुरु कर दी। अच्छी बरसात होने से जमाना अच्छा हुआ और महाराज बहुत प्रसन्न हुए। नही करने व हरा वृक्ष नहीं काटने की राजाज्ञा पत्र के रुप में लिखकर उन्हें सौंप दी। 

 

सन् १७३० (संवत १७८७) में उस समय जोधपुर किले की चारदीवारी का निर्माण कार्य चल रहा था और निर्माण हेतु चुने की आवश्यकता थी। 

 

मंत्री गिरधरदास भण्डारी ने महाराजा से अनुरोध किया की महाराज चुना बनाने के लिए लकडियों की आवश्यकता है जो की विशनोई बाहुल्य गांवो की सरहद में मिल सकती है इसलिए आप हुक्म दें तो मै खेजड्ली गांव की सरहद में खेजडियां कटवाकर लाऊं। 

 

राजाज्ञा पाकर राजा के करिन्दे खेजडली पहुंचे तो वहां के बिशनोईने उन्हे पेड से काटने से रोका। कारिन्दे खेजदली से वापस राजमहल पहुंचे तो गिरधरदास बहुत क्रोधित और की सरहद में खेजडी के पडे काटने है तुम लोग कारिन्दों को पेड काटने से रोकने वालों को सजा दो। जब सैनिकों की टुकडी देखकर गांवो वालो भी एकत्रित हो गये और पेड नही काटने दिये। 

 

जब सैनिकों की टुकडी देखकर गांव वालो ने सोच लिया की अब हमसे पेंडो की रक्षा करना असम्भव है इसलिए सभी विशनोईयों को इतला करवानी होगी। चौ. अणदोजी भादु, हरदासजी बुडिया, रामजी खोड ने आस-पास के गांव वालों को सुचित करने के लिए लोगों को भेज दिया। 

 

उन लोगों ने रामडावास से गायणा को बुलाया और चौरासी खेडा (गांवो) को चिठ्ठी फाडी (पत्र लिखे) और संदेश दिया की विशनोई धर्म खतरे में पड रहा है। राज कर्मचारी पेड काटना चाहते हैं। अत: धर्मरक्षार्थ पेडों को बचाने के लिए आप सभी सहयोग करें। सभी लोगों को जैसे ही समाचार प्राप्त हुआ, तरन्त खेजडली गांव चल दिय। 

 

विष्णु भक्त साचा सही, नेम धर्म की पाज। 

 

सो खेजडली आविया, बारां मिलणै काज ॥ 

 

कई लोग अपनी बैल गाडियां व ऊंट लेकर आये और उनके साथ में औंरते व लडकिया भी आ गई मानों कोई शादी या मेले में जा रहे हों। सभी सज्-धज कर आये और गुडा की सरहद में स्थित एक छोटे से तालाब पर डेरा जमया। यह तालाब खेजड्ली की सीमा के बिल्कुल समीप ही है। 

 

स दिन से एस तालाब का नाम पंचाया नाडिया पड गया। इस नाडिये के पास ही खेजडली में शहिद ३६३ में से कुछ शहीदों का अंतिम संस्कार किया गया। उनकी समाधि पर संत लक्ष्मीराम जी ने संवत २०१५ में एक साथरी बना दी, जहां पर स्वामी भागीरथदास जी आचार्य के पौत्र शिष्य स्वामी बजरंगदास जी सेवा कर रहे है और प्रतिवर्ष चिलत नवमी को विशाल मेला लगता है। वहां विशनोई जमात न हवन प्रारम्भ कर दिया और उन्नतीस नियमों पर चर्चा शुरु कर दी। 

 

भादवा शुदि दसमी मंगलवार को प्रात: ही गिरधरदास भण्डारी स्वयं बहुत बडी सेना लेकर खेजडली आ गया और पेडो को काटने का आदेश दिया। उस समय रामुजी खोड धर्मपत्नी अमृतादेवी बैनिवाल, जिसका घर खेत में नही था, ने सबसे पहले उनको देखा और गांव वालो को सुचित किया कि पेड काटने के लिए करवारिये ( राज कर्मचारी) आ गये है। 

 

जब तक गांव के लोग आते तब तक उसने व उसकी पुत्रियों ने उनको पेड नहीं कातने दिया और पेडो से चिपक कर जोर से आवाज दी: 

 

 सिर साठे रुंख रहे, तो भी सस्तो जाण। 

 

सैनिकों ने उसे पेड से हटाने की बहुत कोशिश की, परन्तु उसने एक नही सुनी और कहां कि जब तक में जिन्दा हु तब तक पेड तो क्या उनके एक भी घाव नहीं लगने दुंगी। जब तक पंचाया नाडा से विशनोईयो की जमात वहा पहुंच गई और वे भी अमृता की तरह पेंडो को बचाने के लिए उनसे चिपक गये। 

 

गिरघरदास भण्डारी ने कहा कि आप पेड नही काटने देते हो तो कोई बात नही। आपके जो कर माफ है उसको दे दो आपको महाराजा ने बहुत छुट दे दी है। तब विशनोई चौधरियों ने कहा़: 

 

दाग लगे जे दाम दां, पंथ मां पुणा होय। 

 

पण राखां पाणी चढे, कलंक न लागे कोय ।। 

 

महाराजा ने हमें पांचवा हिस्सा ही कर के रुप में देने का आदेश दिया है, अगर हम अब आपको तीसरा हीस्सा कर के रुप में देते हैं तो हमारे पंथ की उपेक्षा होती है। इसलिए हम न तो कर देंगे और न हि पेड काटने देंगे। हम स्वयं महाराज जी से मिलेंगे व पेड नहीं काटने की विनती करेंगे। 

 

गिरघरदास ने कहा, जो मैं कहता हुं वही राजाज्ञा है और मै पेडो को आवश्यक कतवाऊंगा। तब गिरधरदास भण्डारी उत्तेजित हो गया और अपने आदमियों को पेड कातने का आदेश दे दिया। 

 

गिरधरदास भण्डारी राजमद में था अत: उसने सैनिकों से कहा कि जो पेड काटने से रोकना चाहता है उसको पेड के साथ ही काट डालो। 

 

जे कोई आवे हो हो करतो तो आप जु हुइये पाणी 

 

 

 

सैनिक खेजडियों के पास चल गये और उनको कातने की तैयारी करने लगे। चौरासी खेडों के विशनोई शान्त, शिक्षित सिपाही की भान्ति कतार बध्द खडे हो गये और देखते सभी लोग वृक्षों से चिपक गई और उन दरिन्दों को ललकारा कि तुममें हिम्मत हो तो सबसे पहले मेरा सिर काट दो बाद में पेड पर कुल्हाडियां चलना। दरिन्दों ने अमृता देवी पर वार किया और उसके साथ पैर काट दिये परन्तु उसने खेजडी के पेड को नहीं छोडा, तब उसका सिर धड से अलग कर दिया। 

 

उसकी तीनों पुत्रियों ने अपनी माता की भँति खेजडियों को बाहों में पकडकर सीने से लगा और अपना बलिदान दे दिया। इस प्रकार लगातार २७ दिन तक यह खंडाणा चलाता रहा और ७२ स्त्रिओं और २९१ पुरुषों ने अपने प्राणों को न्योंछावर कर दिया परंतु एक भी पेंड नही काटने दिया। इतने सारे मानव शरीर कटने के बाद जब उन्होंने पीछे मुडकर देखा तो हजारों की संख्या में विशनोई नर-नारी खडे बलिदान के लिए अपनी बारी का इन्तजार कर रहे थे। 

 

राजकर्मचारियों के हँसले पस्त हो गये और अपनी कुल्हाडिया फँक कर जोधपुर किले की तरफ भागने लगे। सैनिक भी भाग छुटे। तब गिरधदास भी घोडे पर सवार होकर भागने लगे। सैनि़क भी छुटे। तब गिरधरदास भी घोडे पर सवार होकर भागने लगा परंतु डर के मारे वह घोडे से गिरकर ढेर हो गया। 

 

राजा अभयसिंह ने जब वृतान्त सुना तो आश्चर्य प्रकट किया और तुरंत नंगे पांव दौंड कर खेजद्ली गांव में आया और उस जगह देखा जहां धरती पत खुन की नदी बह रह थी। पंचाया नाडियापत विशनोईया की जमात के पास आ गये और अपनी पगडी उतार कर उनसे माफी मांगते हुए कहा- "मैं अपराधी हुं, आप न्यात गंगा मुझे जो भी द्ण्ड दें मैं भुगतने के लिए तैयार हुं। 

 

विशनोई ने कहा कि जो होना था वह तो हो गया परंतु भविष्य में हमारे धर्म पर कोई आंच नहीं आये, इसका उपाय करें। राजा अभयसिंह ने तुरन्त फरमान जारी किया विशनोई गांवो सरहद में कोई शिकार नहीं करेगा और न ही कोई हरा वृक्ष काटेगा। तब से जोधपुर में उनके वंशजो का राज रहा तब तक लागु रहा। 

 

खेजड्ली के प्रसिध्द शहीदी स्थल जालनाडिया में प्रति अमावस को स्थानीय लोग तालाब से मिट्टी निकालते हैं और अपने पुर्वजो के बलिदान की कथा बुजुर्ग लोग सुनाते हैं। इस कथा ने एक कहानी का रुप ले लिया। सन् १९६७ में लच्छीराम जी की सलाह पर भगतासनी निवासी बिडदारामजी बाबल ने एक मंदिर बनया। 

 

सन् १९७८ में लोहोवट में बीरबलराम खीचड के हरिण की रक्षा के लिए शहीद होने पर स्व:संत कुमार जी राहड तत्कालीन प्रधान अखिल भारतीय जीव रक्षा विशनोई सभा जोधपुर आये तो उन्होंने इस घटना पर विस्तृत जानकारी एकत्रित की और श्री रामसिंहजी विशनोई, महन्त रतीरामजी, स्वामी रामानन्दजी, श्री पुरखाराम साहुम श्री अर्जुनराम बुडीया, श्री भबुतराम बाबल, श्री घुलाराम बाबल आदि बुजर्गो व गणमान्य व्यक्तियों से विचार विर्मश के इस स्थान पर राष्टीय स्तर पर मेला आयोजित करने का प्रस्ताव रखा। 

 

लगभह छः माह के अथक आयोजित किया गया। मेले के शुभ अवसर ३६३ व्रुक्ष लगाये गये और स्वामी हीरानन्दजी महाराज को इस दिया और आज यह स्थल मनमोहक व दर्शनीय हो चुका है। यहां पर शहीदों की याद में एक विशाल स्मारक (किर्ति स्तम्भ) भी बनाया गया। 

 

सन १९८२ में ग्राम पंचायत खेजडली के सरपंच श्री पोकरराम भादु ने यहां के तालाब को एक दर्शनीय स्थल बना दिया। इसके अतिरिक्त कुछ स्नानगृह भी बनाये। सन १९८४ में विधायक कोटे से श्री रामसिंह विशनोई ने विशाल मंच का निर्माण करवाया। 

 

सन् १९८५ में राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माधुर व हरियाणा के मुख्यंमत्री श्री भजनलाल विशनोई ने इस स्थल क्षेत्र को आंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बनाने की घोषणा की। यहां पर जन सहयोग से एक धर्मशाला व स्नताश्रम का निर्माण भी किया गया। 

 

सन १९८७ में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री रहे चौ. भजनलाल विशनोई ने इस स्थल को राष्ट्रीय अभ्यरण्य बनाने की घोषणा की, परंतु दुर्भाग्य से वह सार्थक नही हो सकी। 

 

मेला व्यवस्था की जम्मेदारी अखिल भारतीय जीव रक्षा विशनोई सभा की थी परंतु पिछ्ले १३ वर्षो से जीव रक्षा सभा के साथ-साथ मेला व्यव्स्था का कार्य खेजड्ली राष्टीय पर्यावरण संस्थान, जोधपुर व्दारा भी किया जाता है जिसके अध्यक्ष श्री रामसिंह विशनोई है। 

 

विगत कुछ वर्षो में इस पवित्र स्थल पर एक विश्राम गृह, दो बडे हौल व एक राजीव स्वर्ण जयंती विद्दालय का निर्माण करवाया गया। खेजड्ली शहीदी स्थल भुमि सीमित थी परंतु श्री भारमलराम खावा, श्री अचलाराम गोदारा ने कुछ जमीन दान दे दी और लगभग ३० बीघा जमीन संस्था व्दारा खरीद ली गई। अभी दो वर्ष पुर्व इस स्थल के पास मंदीर के पीछे २५ बीघा जमीन खरीद कर विशाल व भव्य मंदिर बनाने का निर्णय लिया गया। 

 

इस स्थल पर मंदिर निर्माण का काम प्रगती पर है। वर्तमान में खेजडली जैसे स्थल का महत्व अत्याधिक बढ गया है क्योंकी इस समय दुनियां में पर्यावरण प्रदुषण से त्राही-त्राही मची हुई है।  

 

ऐसी अवस्था में खेजड्ली बलिदान मानव समाज को प्रेरीत करने में बहुत बडा सहभागी बन सकता है। इसके लिए इसका घर-घर, गांव-गांव, शहर-शहर में प्रचार करना होगा ताकि मानव मात्र में जीवों व पेंडो के प्रति दयाभाव उत्पन्न हो सके। 

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