विश्नोइयों के लिए श्रध्दा के केन

विशनोईयों के लिए श्रध्दा के केन्द्र

१. जन्मस्थली पीपासर:
नागौर जिले का पीपासर ग्राम जो ४५ किलोमीटर नागौर से उत्तर दिशा में स्थित है।वि.स.१५०८ में ग्राम पति ठाकुर लोहटजी के घर जम्भेश्वर भगवान का अवतार इसी ग्राम में हुआ था। इसी ग्राम में जाम्भोजी ने निवास किया था। ३४ वर्ष २ माह तक।
इसी क्रम में सरहद में गाए चराई थी जांभोजी ने २७ वर्ष तक राव दुदाजी को परचा दिया था। लोहटजी को चमत्कार दिखाया था। खेमनारायण ब्राम्हण को प्रथम शब्द का उच्चारण कर अभियाण चूर किया था।
पीपासर के कुएं में से कच्चे धागे से जल निकला था। वर्तमान मे वहा साथरी है जहां प्रति वर्ष अमावस्या है एवं फाल्गुन में मेले लगते है। इस साथरी के पास कुआं है।
 

२.तपोस्थली समराथल धोरा
:
पीपासर व समाधिस्थल मुकाम के बीच मुकाम से तीन किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। वहां बिशनोई पंथ पवर्तन किया था।
पूल्होजी को स्वर्ग दिखाया था और अनेक्-अनेक चमत्कार करते हुए ५१ वर्ष ज्ञानोपदेश किया था। यहां विशाल मंदिर तथा संत आश्रम बने हुए है। फाल्गुन तथा आसोजी में मेले भरते है।

३. समाधि स्थल मुक्तिधाम मुकाम:
वि.स.१५९३ में बैकुंठ धाम सिधारने के पश्चात भगवान जम्भेश्वर की समाधि इस स्थान पर लगाई गई थी। मंदिर निर्माण का कार्य पूर्ण होने के बाद फाल्गुन की महाशिवरात्रि से मेला भरना आरंभ हुआ था जो आज विशालतम मेले का रुप ले चुका है।
समाधि स्थल पर १५९३ में नीव लगाकर हुजूरी भक्त रणधिरजी बाबल ने भगवान जम्भेश्वर के मंदिर का भव्य निर्माण कराया। वर्ष मे दो बार मेले भरते है। इनके अतिरिक्त श्री गुरु जम्भेश्वर भगवान के मुख्य धाम जीभोलाव्,रोटू,रामडावास्,जांगलू,लोहावट्,लोदीपुर आदि पर पवित्र माने जाते है।


४.जाम्भोलाव
:
यह तीर्थ राजस्थान राज्य की तहसील से ८ कोस अर्थात २५ किं.मी. उत्तर-पूर्व दिशा में स्थित है।यहां एक बडा व दर्शनीय तालाब है जिसको स्वयं जाम्भोजी ने १५६६ वि.संवत में खुदवाना शुरु किया था,जिसकी १५७० वि.संवत के बाद तक खुदाई होती रही।
इसी तालाब के ठिक उत्तर दिशा की तरफ अत्यंत निकट ही मंदिर है। जहां सुबह शाम हवन के समय विद्युत चलित वाद्ययंत्र सुमधुर ध्वनी में प्रभु काइस तालाब में भक्तजन स्नानकर ब्रम्ह श्री चरणों में नतमस्तक हो स्वार्गिक आनंद का अनुभव करते हैं। तालाब के पास बसे गावं का नाम भी जाम्भा है। यहां पर 'आथूणी व अगुणी जागां'के नाम से साधुओं की दो परम्परायें विद्यामान हैं जो क्रमश मंदिर संचालन का कार्य करती हैं। यह तीर्थ विसन तीरथ्, विसन्-तालाब कलयुग तीरथ आदि अनेक नामों से विख्यात है।
 यशोगान करते हैं।

यह वही स्थल है जहां कपिल मुनि ने तपस्या की थी व पाण्डवों ने यज्ञ किया था। जाम्भो जी ने कलयुग के जीवों के उध्दार हेतु इसे पुनः प्रकट किया था। इस तीर्थ के दर्शन हेतू पाठ्क क्रुपया चित्र ३ पर द्रुष्टिपात कर आनंद उठावें।
यहां पर वर्ष में दो मेले लगते  है। बडा मेला चैत्र बदी अमावस्या को तथा छोटा मेला भादवा सुदि पूर्णिमा को लगता है। श्रध्दालुजन यहां मिट्टि खुदवाने व परिक्रमा आदि की जात भी बोलते है। बिशनोई संप्रदाय में इसकी महिमा और महत्त्व प्रयाग संगम के समान है।
यह तिर्थो का तीर्थराज है। मंदिर में स्थापित सिंहासन इसी का पुण्य प्रतीक है। संतप्रवर केसो जी ने इस तीर्थ की महिमा को यूं प्रतिपादन किया है :
पारब्रम्ह परगट कियौ जगंमा झांभोलाव ।
पापां षंडंण कारणौ, तीर्थ कियौ तलाव ।

५. जांगलू
यह साथरी जांगलू गाव से लगभग ४ कि.मी.दक्षिण पश्चिम में स्थित है। साथरी में उत्तर की ओर एक चौकी बनी हुई है। प्रसिध्द है यहां गुरु जम्भेश्वर साथियों सहित १५७० वि.संवत में जैसलमेर में जेतसंमद बांध का उदघाटन-यज्ञ करने हेतू वहां जाते समय यहां ठहरे थे तथा इस स्थान पर हवन किया था।
इसके पास ही कंकडो का एक व्रुक्ष है जिसे जाम्भोजी ने खुद अपने हाथों से लगाया था।ठाकुर धनराज जी भाटी ने इसके लिए ६००० बीघा ओण् (परती भूमि) छोडी थी।

पिछोवडो जांगलू:
जांगलू गाव के पीछ्वाडा में एक बहुत ही सुंदर एवं भव्य मंदिर है जहां गुरु जी का चोला,चींपी (भिक्षापात्र्) रखे हैं। यहां प्रतिवर्ष लगभग २०० क्विंटल से भी अधिक गी का चढावा आता है । जिसे श्रध्दालुजन गुरु आदेश एवं मन्नत हेतु चढाते है ।
मेहोजी थापन श्री जाम्भो जी की तीन वस्तुंए चोला, चींपी (भिक्षापात्र्) और टोपी लेकर यहां आये थे। जिसमें से टोपी उन्होंने मुकाम के थापनो की प्रार्थना पर वापिस लौटा दी थी।
शेष दोनों वस्तुएं यहां विद्यामान हैं। ये मेहो जी यहां मंदिर के पिछवाडे से लाये थे तभी से यहा मंदिर पिछवाडे के नाम से विख्यात हुआ।

६.रोटू:
रोटू धाम तहसील जायलः में नागौर से लगभग १५ कोस पूर्वोत्तर में स्थित है। प्रसिध्द्द है कि यहां १५७२ वि.संवत में गुरु जम्भेश्वर जी महाराज ने जोखे भादू की बेटी उमां (नौरंगी) बाई का भात (मायरो)भर था। 'अमर शाह्' नियम का केवल यही अक्ष्रतः पालन होता है।
जिस स्थान पर आकर गुरु जी रुके वहां पर एक सुखा हुआ खेजडी का पेड था जो स्वता: ही भरा हो गया था। कालान्तंर में श्रध्दालुओं ने उस स्थान पर चौकी बनवाकर एक स्थल बना दिया, जहां अब अटल जोत होती है।
यही स्थान साथरी कहलाता है रोटू गांव में जन्-सहयोग से वर्तमान में एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है, जिसमें दर्शनार्थ एक खांड तथा गुरुजी के पत्थर पर अंकित चरण चिन्ह मौजुद हैं।
देखें चित्र गुरु महाराज ने यहा खेजडी के हजारो व्रुक्ष लगाये थे जो आज भी देखे जा सकते हैं। यहां यह प्रसिध्द है कि इस गाव की फसले से चिडिया दाना नहीं खाती, मात्र इन खेजडिया पर विश्राम करती है। टोकी स्थान पर सागियां सिध्द का धोरा है जिसका गुरु जी से साक्षात्कार हुआ था और वह उनके आदेश से वहां से स्थानान्तरित हो गया था।
जोण है,वह यही स्थल है जहां गुरु जी भात भरने आये थे। उस दिन सर्वप्रथम उन्होंने यहीं आसन लगाया था।धाम दर्श्न हेतु चित्र रंगीन प्रुष्ठों पर देखें।

७.लोदीपुर धाम :
जैसा कि उत्तरप्रदेश के प्रमुख स्थल नामकुलेख में उल्लेखित है, गुरु महाराज यहां १५८५ वि.संवत में जब आये तो अपने भ्रमण काल में उन्होंने ग्रामवासियों के निवेदन पर खेजडा का व्रुक्ष लगाया था।इस लेख के बारे मे अधिक जानकारी प्रुष्ठ सं.६० सेलें।धाम दर्शन हेतु चित्र रंगीन प्रुष्ठो पर देखे।

 



८.लालासरः
लालासर साथरी बीकानेर से ६० कि.मी.दूर दक्षिण्-पूर्व में स्थित है जो चारो ओर ओण से घिरी हुई है।यह साथरी गांव लालासर से ७ कि.मी.की दूर जिसके चारो ओर १५९३ मिंगसर बदी नवमी के दिन गुरु जम्भेश्वर के निर्वाण पद प्राप्त किया।
वहां स्थित कंकहडी तथा लालासर साथरी श्रध्दालुओं के लिए श्रध्दा का अनुपम केंद्र है। यहां पर मंदिर भी है जहां मेले के अवसर पर श्रध्दालुओं का तांता लगा रहता है।
   
   

Site Designed-Maintained by: TechDuDeZ,Pune