साहित्य

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जम्भसागर स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार व सुभाश चौकर, ऋशिकेष,उत्तरांचल
जम्भसागर - | स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
जम्भसागर - || स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
सब्दवाणी दर्षन स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
खेजडली बलिदान स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
षब्दवाणी गुटका स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
जम्भसरोवर कथा स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
अमावस्या व्रत कथा स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
समराथल स्वामी कुश्णानंद जी आचार्य
जाम्भोजी की वाणी सुर्य षंकर पारीक
   
पर्यावरण ज्ञानबोध डा. बी.बी.एस.कपूर श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार व विकास प्रकाषन, बीकानेर श्री बिशनोई मन्दिर हिसार व मधु पब्लिकेषन,बीकानेर
भारतीय संस्कृति पर्यावरण डा. बी.बी.एस.कपूर
   
विल्होती की वाणी डा. कृश्णलाल बिशनोई श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार व बी - 111, समतानगर, कृशि उपज मंडी के सामने, बीकानेर, राज.
बिशनोई संतो ंके हरजस डा. कृश्णलाल बिशनोई
महात्मा सरजन दास
जी के हरजस
डा. कृश्णलाल बिशनोई
त्ीतर पंखी बादली डा. कृश्णलाल बिशनोई
वरदा डा. कृश्णलाल बिशनोई
     
जम्भाणी षब्दार्थ प्रा. श्रीकृश्ण बिशनोई खीचड श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार
बिशनोई धर्म प्रकाष स्वामी भागिरथ दास जी आचार्य
बिशनोई धर्म प्रवेष स्वामी भागिरथ दास जी आचार्य
जम्भेष्वर भगवान तथा मारवाड स्वामी भागिरथ दास जी आचार्य
मेवाड का संक्षिप्त इतिहास  
सदानंद - | स्वामी सदानंद
सदानंद - || स्वामी सदानंद
सबदवाणी गुटका स्वामी सदानंद
     
जाम्भाजी साखी भजन संग्रह   श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार
गुरू जम्भेष्वर लाल बिशनोई श्री बनवारी लाल बिशनोई
सबदवाणी गुटका बिशनोई सभा हिसार
     
जम्भ गीता मा. माला राम गोदारा श्री बिशनोई मन्दिर, हिसार ,
बिशनोई धर्मषाला, सांचौर


विशेष आभार

रामायण सोढा - जैसला, त. फलोदी, जि. जोधपुर (राज.)
बाबुलाल सारण - (जानवी), मिलन मेटल - (दिल्ली)
मांगीलाल बिशनोई - कड़वासरा, मु. बासनी, जोधपुर (राज.)
संदीप गोदारा - कालवास (ढाणी) जि. हिसार (हरि.)
योगेंद्रपालसिंह बिशनोई - कृष्ण पूरी, लाईन पार, मुरादाबाद (उ.प्र.)
अमरज्योति (मासिक पत्रिका), जम्भसागर टीका

विशनोईयों में प्रचलित कहावतें (मुहावरे)

भारत विभिन्न धर्मिक सम्प्रदाय और विभिन्न जातियों वाला महान देश हैं। बिशनोई जाति भी उत्तर भारत में अपना गौरव पुर्ण स्थान रखती हैं। इस जाति की स्थापना श्री गुरू जम्भेष्वर महाराज ने सन् 1485 में भारत में फैले हुए अन्याय और अत्याचारों से मृक्त पाने के उद्देष्य से समराथल धोरे पर हरि कंकेहडी के नीचे की । उस समय अधिकतर लोग राजस्थान से ही थे। असी कारण हबष्नोई जाति पर राजस्थानी भाशा की छाप रही। धीरे-धीरे यह लोग राजस्थान से पलायन करके देश के अन्य भागों में जा बसे। लेकिन भाशा ज्यों कि त्यों ही रही और इन्हीं भाशाओं ने वर्तमान में कहावतों का रूप ले लिया। आपने अब तक अनेक भाशाओं की कहावतें पढी और सुनी होगी। यहां हर बोली अपनी-अपनी कहावते हैं। यह कहावतें यों ही नहीं बनती हैं। इनके पीछे अपने अनुभव का इतिहास होता है। समय की छाप होती है इन पर । कठिनाइयों की कहानी होती हैं। बिशनोईएक धर्म हैं, एक समाज है और एक जाति तो यह है ही। बिशनोईकी बोली अपनी अपनी एक अलग बोली हैं अन्य समाज में बिश्नोईयों की बोली समझ तो सकते हैं पर बोल नहीं सकते। अन्य बोलियों से इसका मौलिक भेद भी स्पश्ट हैं। इस बोली का इतिहास आज से करीब 524 वर्ष पुराना है इन वर्षा में बडे- बडे कवि एवम् साहित्यकार हुए हैं, जिन्होंने अपना लौकिक साहित्य अपनी बोली मे ही लिखा था, और आज आधुनिक समय मे इन कहावतों ने भी अपना विषिश्ट मानदण्ड स्थापित कर लिया है और यह सर्वविदित ही है कि जिस भाशा में जितने अधिक मुहावरे एवं लोकाक्तियां होती है वह उसकी सम्पन्नता का द्योतक है।

1.  अै तो नाई आला कतरिया है, दो दिनां में आगी आय जई - समय आने पर षीघ्र ही किसी वस्तु की स्थिति का पता चल जाना। चाहे व्यक्ति कितना ही उसे छुपा ले ।

2.   नानी रांड हदाई कोयनी हवै - एक बार जब किसी व्यक्ति से विष्वास उठा जाता है तो पुनःउस व्यक्ति पर सहज ही में विष्वास नहीं किया जाता।

3.   नेहचो राखो तो साध ही भगवान है, नही तो भगड - विष्वास राखो तो साधु ही भगवान है अन्यथा मांगने वाले बाबे। अर्थात् विष्वास से ही सब कुछ होता है।

4.   धणी भाऊं अबी जीमों, चाहे कुत्ता खो- मालिका की और से चाहे अब जाति के लोग खाओ या अन्य जातिके उस पार कोइ्र फर्क पडने वाला नहीं है क्यांकि उसके तो जो रूप्ए लगने थे वे लग चुके हैं।

5.   गले में पडयो ढोल तो बजाणों ई पडै है - गले में डाला हुआ ढोल तो बजाना ही पडता है अर्थात् कोई काम मजबूरी वश ही कराना, उस काम के करने में उस व्यक्ति को कोई रूचि न होना।

6.   क्ह धीवडी नै, हमझावे भऊडी नै- लडकी की मां कहती तो अपनी लडकी को है लेकिन समझना बहू को है। दैनिक व्यवहार में यह एक परम्परा सी बन गई है कि प्राय प्रत्येक बात को सीधी कहने की बजाए उस बात को घुमा फिरा कर हना। यही बात इस कहावत में है। इसमें लडकी की मां उसे कुछ कहती है लेकिन उसका वास्तविक उद्देष्य बहु को ही कहने का है। अतःबहु उस वार्तालाप से सब कुछ समझ जाती है।

7.   गोगे गो गयोडो मेह और समठेणी गो रूसियोडो सगो फिर कोयनी मिले - जिस प्रकार मानसून के चले जाने के बाद वर्शा नहीं होती, उसी प्रकार विवाह में विदाई के समय यदि दोनों पक्षों के रिष्तेदारों में किसी बात को लेकर विवाद हो जाए तो उनका दोबरा मिलन कभी नहीं होता।

8.   बिगेअ राज में देर है अंधेर कोयनी - जब कोई कमजोर व्यक्ति पर बडा व्यक्ति अपना अधिकार चलाता है, तो वह भगवान से प्रार्थना करता है कि यहां तो ऊंच-नीच का भेदभाव है, लेकिन तेरे दरबार में तो सब एक है। अर्थात् मेरा ख्याल अब ही रखना।

9.   नींद न देखियों बिछावणो, भूख न देखियो स्वाद - अधिक थक जानां जब व्यक्ति परिश्रम कर जब षाम को घर आता हैं, तब वह कुछ भी नहीं सोचता की भोजन कैसा है या सोने के लिए पलंग कैसा है उसे सिर्फ जो मिले उसी में वह संतोष कर लेता है।

10   खोदयो भाड नकिलियों ऊंदरो - कम लाभ होना। जब कोई व्यापार हम अधिक मुनाफे के लिए करते हैं लेकिन अन्त में उसमें लाभ कम मिलना।

11   कीकर सूकियो बकल बिना, ऊंदियो मर गियो अकल बिना - मलीन बुध्दी हो जाना। जब व्यक्ति वृदावस्था आ जाने पर भी अपनी पुरानी आदत नहीं छेडता है। तब लोग इस प्रकार की कहावत का प्रयोग करते हैं।

12   गुजर गई गुजरान, कै झोपडी कै मैदान - बहुत समय बीत जाना। जब कोई व्यक्ति अपना घर गांव छोडकर दूसरे देश या प्रदेश में कमाई के लिए चला जाता है और कुछ वर्ष बाद पुनःदुबारा आता है तो वह अपने गांव के बारे में पूछता है तब लोग इसी कहावत का प्रयोग करते हैं।

13   क्रीडह गी तिरां रंग बदले है - बात-बात पर बदल जाना। किसी व्यक्ति को एक बार किसी बात पर मना लेने के बाद भी दोबरा उसी बात को दोहरा कर केाई फैसला न करना।

14   जक्की थाली में जीमें, बिहगीथाली फोंडे है - धोखा देना। किसी के साथ मित्रता का व्यवहार कर उसके काम में ही बाधा डालना।

15   मैं आई तेरे, तू चढ बैठी बिडेरे - घर आए हुए मेहमान का आदर सत्कार न करना। जब बहन सुसराल से मायके आती है तो भाभी उसका आदर सत्कार की बजाए अपने काम ही में व्यस्त रहती है तब बहन इसी कहावत को प्रयोग करती है।

16   बादी किहगीं अर गहणा किहगां - बाहरी दीखावा करना। किसी सामाजिक उत्सवोे में स्त्रियां दूसरी स्त्री से सोने के आभूषण लाकर अपने गले में डालकर जाने से वहा उपस्थित स्त्रियां इसी कहावत का प्रयोग करती है।

17   गुड तो लागे हैं घर आले गो, गीत गावे बीरा गा - बिना किसी लाभ के दूसरों की प्रषंसा करनां अधिकतर स्त्रियां अपने ससराल में मायके वालों का ही गुणगन करती हैं

18   कित राजा भोज, कित गांगलों तेली - किसी निम्न व्यक्ति की तुलना उच्चे व्यक्ति से करना।

19   धाबले ग भेलो फूंदियों रंगीजे है- दोहरा लाभ होना। पुराने समय में जब महिलाएं धाबला पहनती थी, जो सफेद रंग का होता था।उसकी जब रंगाई करते थे तो उसके ऊपर जो फूंदे होते थे वह अपने आप ही रंगीन हा जातेथे।

20   सिर मुडादा ही ओला पड गिया - किसी कार्य को हाथ में लेते ही उसमें हानि हो जाना।

21   टाबरा गो पालो बकरिया चरे हे - सर्दी के मौसम में बच्चों को चाहे कितना ही रोका जाए, लेकिन बच्चे सर्दी में बाहर घुमते रहते है तब बुजर्ग इस कहावत प्रयोग करते हैं।

22   घर में तो ऊदरां कलाबाजी करे हैं, बात करे हे गढा कोटा गी - अपने पास कुछ भी न रहने पर भी दूसरों के सामने अपने को श्रेश्ठ साबित करना।

23   ऊंदरे ने मिल गयो हल्दी गो गाठियों पंसारी बन बैठियों - थोडा सा मान-सम्मान मिलने पर या थोडा सा पास में पैसा होने पर अपने परिवार या पडोस के लोगों के साथ ज्यादा मेल-मिलाप न रखना।

24   भींते ने बिगाडे आलो,घर ने बिगाडे सालो -जिस प्रकार दीवार के अंदर आला छोड देने पर वह दीवार को कमजोर कर देता हैं उसी प्रकार घर में अगर साला रहने लग जाता है तो संयुक्त परिवार टूटना स्वाभाविक ही है।

25   अवसर चूकी डूमणी गावे आल जंजाल - समय बीत जाने के बाद केवल पछतावा ही शेष रह जाता हैं।

26   दुनिया पर्चो मांगे है देवी आपगा दिन कोटे हे - जब कोई व्यक्ति अपने इश्ट देव को छोडकर अन्य देवी-देवताओं की पूजा करता है तब अक्सर लोग इसी कहावत का प्रयोग करते हैं।

27   गाय गई अर गलूडो ई ले गई - कुछ भी न मिलना। किसी कार्य को करने में अपना धन भी लगा देना और काम भी न बनना।

28   दादों के ढालो नै फोडे - महत्व न रहना । किसी वस्तु का महत्व किसी विषेश अवसर तक ही सीमित होता है। जैसे दादा के लिए ढोल बजाने का अब कोई अर्थ नहीं है। क्योंकि अब वृध्द हो चुका है जबकि यह कार्य तो योवन में होता है इसलिए दादा गुस्से में कहते हैं िकवह क्या ढोला न फोडै।

29   चुपडेडी अर दो-दो - दोहरा लाभ होना। किसी वस्तु खरीद लेने के बाद जब उसको बेचते हैं तो उसका मूल्य उसकी कीमत से ज्यादा बढ जाना।

30   फूफा रूसई तो क्या है, बुआ न ई ले जही - किसी के नाराज होने से कोई विशेष असर न पडना । यदि कुछ हानि हो भी तो उसका पहले ही पता चल जाना।

31   बिल्ली ने तो ताकल गोई डाम घणो - गरीब व्यक्ति के लिए थोडा ही नुकसान काफी हैं।

32   सगलाई आपगी रोटीया नीची खीरा दय हैं - कोई व्यक्ति किसी दूसरे के काम को करने से पहले उसमें अपना ही मुनाफा देखना।

33   राड गो अर खाटै गो के भदावणों- लडाई और छाछ को बढाने में कोई विषेश प्रयत्न की आवष्यकता नहीं होती।

34   लगावडो कुत्तियों किताक दिन षिकार मारै - किसी को मजबूर कर कितने दिनों तक काम करवाया जा सकता हैं काम तो स्वेच्छा से ही ठीक होता हैं।

35   गोबर (किचड) में भाठा मारे तो गाभाई नास हवै- गलत काम करने काा नतीजा हमेषा गलत ही होता है।

36   सात सालाऊं तो अकूल्डी गोई मोल बएज्य हैं - लब्मे समय बाद तो एक महत्वहीन वस्तु भी मूल्य बढ जाता हैं।

37   ऊंचा चढ-चढ देखों, ओई घर-घर लेखो - एक ही सांस्कृति रहन-सहन, खान-पान, वेश भूशा आदि वस्तुओं का एक जैसा होना।

38   दूबले ने दो शाढ - किसी कमजोर व्यक्ति को सामने वाला व्यक्ति भी कमजोर मिल जाने के कारण उसका कार्य पूरा न होना।

39   मोरीय गी ऊतवाल हूं चना कोयनी पाके हैं - जल्दबाजी से कुछ भी नहीं बनता हैं।

40   सेर ने सवा सेवर टकरै है - जेसे को तैसा मिलना।

41   सुतांगी भैस पाडा ई लावै है - किसी कार्य को दूसरों के भरोसे पर छोड देने से उसका परिणाम कभी अच्छा नही होता।

42   आंख्या मैं घात्याडो ई कायेनी रडके - किसी को अपने अधीन इतना कर लेना िकवह कुछ भी न बोले ।

43   इता बाधा कित, जो की बहुऊ कलेवा करें - शर्म करने से या कमजोर पडने से कुछ भी हासिल नहीं होता |

44   अडो-धडो अर बहुऊ पर पडो - घर के अन्य सदस्यों में कोई गलती होती है तो वह इसका दोष बहुऊ पर डाल देते हैं क्योंकि बहुऊ घर में नई-नई आई हुए होती है तथा वह बोलती कम है उसकी इसी कमजोरी का फायदा उठाकर प्रत्येक दोष उस पर मढा जाता है।

45   खंवदी-पीवंदी डूमणी घर में घात्यो घोडो - सभी सुविधा सम्पन्न होने पर भी सास बहुऊ का संबंध अच्छा न रहना।

46   ळोली भछे छाबलो मार घसम ग सिर मैं - समय बीत जाने के बाद उस वस्तु की कोई कीमत न रहना।

47   चालणों सडक गो हवे चाहे देर ही, रहणों भाइयां मे हवे चाहे बेर ही - मनुश्य को सदा नेक रास्ते पर ही चलना चाहिए ताकि उसे कहीं अपमानित न होना पडे और अपने भाईयों के साथ ही रहना चाहिए जो कि सुख दूख में अपने को श्रेश्ठ साबित करना।

48   छेन लेन नतो की है कोयनी बात कर हैं बढा कोटा गी - अपने पास कुछ न रहने पर भी दूसरों के सामने अपने को श्रेश्ठ साबित करना।

49   आंधो नीवते दो जिमावे -
50   बांधो तो कोयनी बना, बीन बणोडा देखिया हैं -
51   नाह्दा ने वाहन बराबर हे -
52   जद बींद ग ही मुंह में लार पडे तो जनेती के करे बापडा -
53   लडदा गी मां दो होय जै हे -
54   का तो गेली सासरे जावे कोयनी, जावे तो आवे कोयनी-
55   भवुआ हाथ चोर मरावे चोर भवुगा गा भाई -

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