हवन का महत्व

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श्री गुरू जम्भेष्वर भगवान ने कहा है कि जे प्राणी धर्म और सुख पूर्व जीवन व्यतीत करते हुए अन्त में परमधाम में जाने की इच्छा हो तो मानव सात्विक देवयज्ञ (हवन) नित्य प्रति करें।
धर्म रूपी पेड के तीन बडी-बडी डालियां है। " त्रयो धर्म स्कन्धा है पथम सात्विक देवयज्ञ, दूसरा सदविद्या का पढना व पढाना और तीसरा सुपात्र को देषकाल की परिस्थिती देखकर अहंकार रहित होकर यथा षक्ति दान देना।
" ओइम वेद कुराण कुमाया जालु "।
श्री गुरू जम्भेष्वर भगवान ने एक षब्द में कहा है कि वेद षास्त्रों के अनुसार जीवन यापन करें तो बहुत ही कल्याणप्रद हैं
हवन सामग्री: ढाक, आम, पीपल, अथवा खेजडी की स्वच्छ सुखी लकडी या छापे (कंड) की धुपिया (अग्नि) से भी हवन किया जाता है। धूपिया करते समय कभी भी भूलकर मुंह से फुंक नही देनी चाहिए। घर का देसी घी, गुगल, सफेद चंदन, छोटी इलयाची, लवंग, नागगरमोथा, बालछड, अगरबत्ती, अगर,त गर, बादाम दुहारा, खोपरा, कपूर, जौ, तिल, खांड, मीठा अन्न, नारियल, बतासा आदि हवन से पहले एकत्रित कर लें।

हवन करने की विधी: हवन कुण्ड षुदध होना चाहिए तथा आहुति देने वाला व्यक्ति सन कर ढंग से बैठकर आहूति दें । सिर पर पगडी तथा धोती व सफेद कपडे पहने हुए होने चाहिऐ। नीले रंग का कोई भी कपडा पहना हुआं नहीं होना चाहीए। फिर षुध्द सात्विक भावसे श्रध्दापुर्वक ओ3म स्वाहा के साथ आहुति देनी चाहिए। पहले वैदिक मंत्र फिर गोत्राचार बोलकर भी जम्भेष्वर भगवान के षब्दो से हन करें । तो विषेष फलदायक हैं। भगवान श्री जम्भेष्वर ने एक सबद में कहा है कि " बासन्दर नाही नख हीरू, धर्म पुरूष सिर जीवै पुरू "|

हे प्राणी उत्तम गति के लिए मनुश्य विधिपुर्वक यज्ञ करें। अग्नि देव की उत्तम सामग्री से हवन आदि के व्दारा पूजा करना भगवान की सब पूजाओं में श्रेश्ठ हीरे के नग की भांति है। जो पुरूष नित्य प्रति अग्नि में उत्तम पदार्थो आदी की ज्योत में आहुती देते हैं वे षीघ्र परमात्मा के कृपा पात्र बन जाते हैं। क्योंकि भगवान विश्णु का मुख यज्ञ हैं। अतःषुध्द मन में श्रध्दापुर्वक जो आहुति दी जाती है वह भगवान को पहुंचती है अतःआदि काल में सुश्टी की उत्पति कर भगवान ने प्रजा की भलाई तथा धर्म की उन्नति के लिए इस यज्ञ का विधान किया।
हवन करते समय ध्यान में रखने योग्य बातें हवन करते समय हमें अपना ध्यान हवन की ज्योति की ओर रखना चाहिए। ज्योत में ही जम्भेष्वर भगवान का स्वरूप का ध्यान करना चाहिए। जो व्यक्ति जम्भ्वेष्वर भगवान के षब्दो को ठीक ढंग से न बोलना जानता है अथवा जिन व्यक्तियो को सबद याद न हो उन्हें मौन रहकर सबदवाणी को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। हवन के समीप बैठे हुए सभी व्यक्तियों को अपनी दृश्टी रखने से परमात्मा की षक्ति हमें प्राप्त होती है तथा मन के पाप दूर हो जाते हैं। जहां सबदवाणी से पाठ हों वहां पर किसी दूसरे विषय की बातचीत करना अथवा व्यर्थ इधर-उधर देखना पाप हैं। सबदवाणी के प्रारंभ मं ओइम स्वाहा षब्द का उच्चारण कर अग्नि में आहूती देनी चाहिए। हवन 30 दिन सुतक का हो या मृत्ये उपरांत को हो। वहां पर पहला सबद षुक्ल हंस व अन्य कम से कम दस बीस षब्द अवष्य बोलने चाहिए ।
षुक्ल हंस: जो सभी प्रकार के विकार व दोशों से रहित हो उस षुक्ल (स्वच्छ) कहते है। श्री जम्भेष्वर भगवान परम पुरूष थे उनमें किसी प्रकार के विकार व दोष नहीं थे । हंस षब्द आत्मा का नाम हैं इस षब्द में श्री देव जी ने अधिकतर अपनी जीवन व विषिश्ट षक्ति को बताया हैं। अतःइस षब्द का नाम षुक्ल हंस रखा गया है। सबदवाणी में बहुत बडा महत्व हैं।
हवन में नहीं करने वाली बातें: जो व्यक्ति जागरण हवन, विवाह, मृत्यु भोज आदि में षराब,अमल,तमाखु आदि दूसरों को देता है या खुद लेता है वह अद्योगति को जाता हैं क्योंकि ये तमोगुणी वस्तुए हैं। अतःइनको लेने वाला तथा देने वाला परमात्मा का जप व ध्यान नहीं कर सकता तथा न ही परोपकार कर सकता है। इन सब बातों को ध्यान में रखकर श्री गुरू जम्भेष्वर भगवान ने कहा कि " ओइम कुपात्र कु दान जो दियो, जाणे रैन अंधेरी चोर जो लियो "  हे मनुश्य कुपात्र को दिया हुआ दान ऐसा समझो जैसे कोई अंधेरी रात में चोर धन चुराकर भाग गया।
जो तामसी चीजों का सेवन करने वालों से बढकर और कौन कुपात्र हो सकता है। भगवान ने इंसान से अच्छी कोई योनी नहीं दी और इसमें भी हम भगवान के बताए रास्ते पर नहीं चलते तो हम और पषु में क्या फर्क हैं। आप खुद सोचो अपने दिमाग से सोचोकि जम्भेष्वर भगवान ने आज से 550 वर्ष पहले जो बाते बताई वह आज के पास भी भीड लगी हुई है और बताते हैं कि केंसर जैसी खतरनाक बिमारी इन तामसी वस्तु के सेवन से होती है। मनुश्य जीवन पाया है तो अच्छे कर्म करो। श्री गुरू भगवान जाम्भो जी ने सबद 35 में साफ-साफ कहा हैं कि " जीवडा नै पाछौ सुझन लागौं, सुकृत ने पछताणा "।
जो जीवात्मा इस मानव षरीर से चोरी, छल, कपट, हिंसा, दुराचार, आदि कर यमराज के पास जाता है। वह वहां पर अनेक प्रकार के कश्ट पाता हुआ अपने पूर्व के किए हुए कुकर्मो को देखता है तथा अत्याधिक पष्चाताप करता है कि मैंने अमूल्य मानव षरीर पाकर जो करने योग्य हवन, स्नान, ध्यान ओइम विश्णु का जप, परोपकार आदि षुभ कर्म थे उनको नहीं किया और न करने योग्य पापकर्म थे उनको किया।

मनुश्य के अंतकरण में स्वाभाविक रूप से प्रायः तीन दोष होते हैं।
1. मल 2. विशेप 3. आवरण
मूल: मल नाम का दोष हवन आदि षुभ कार्य कर्म करने से नाष हो जाता है।

विक्षेप: विशेष (अर्थात चित की चंचलता) नाम का दोष वेद षास्त्रों व्दारा प्रतिपादित उपासना (आरती,कीर्तन, गुरू सेवा तथा सदगुरू के वचनों को श्रध्दा से सुनन) से दूर हो जाता है।

आवरण:
आवरण नाम का दोष हवन व वेद षास्त्रों के व्दारा इन पहले कहे हुए दोशों के दूर होने पर ओइम षब्द सोह आप व तत्वमस्यादि महाकाव्यों के व्दारा परमात्मा की कृपा होने पर दूर होता है। अतःसाधना की पहली कोटी में हवन यानि की ज्योत अवष्य करना पडता है। जा दिन तेरे होम न जप न तप न किया, जान के भागी कपिला गाई। श्री गुरू जम्भेष्वर भगवान ने हिन्दु धर्म के पालन करने वालों को षुध्द षब्दों में कहा हैं कि जिस दिन पवित्र हिन्दुओं (बिशनोईयों) के घर में होम (हवन जप, तप (इंद्रिय समयरूपी तप तथा अपनी आंख,जीभ आदि को वंष में रखना) षौच, स्नान आदि नहीं होते उस दिन मानो इस षुभ जाति वालों ने तथा तुमने अपने घर से षुभ कर्म रूप कपिला गऊ को भगा दिया। अथवा गऊ की सेवा न करने पर गऊ घर छोडकर चली जाती हैं। उसी प्रकार धर्म का पालन न करने पर धर्म व्यक्ति बल, वीर्य तथा श्री हीन होकर कश्टपूर्वक जीवन व्यतीत करता हैं।
हवन व पाहल का महत्व: यदि कोई व्यक्ति किसी बूरे संग में पडकर चोरी, डाके के कार्य करने लग गया अथवा अमल,बिडी,सिगरेट, भांग, षराब, मांस, तब्माखु आदि तामसी वस्तुओं का सेवन करने लग गया हो या पर स्त्री गमन की लत पड गई हो तथा मन के कुछ अच्छे संस्कारों के कारण उपयुक्त कार्यो से घृणा हो और मन में परिवर्तन आया हो उसे निष्चय मन में भगवान गुरू जम्भेष्वर का स्मरण कर अग्नि में आहुति देनी चाहिए। हवन होते समय यदि कोई व्यक्ति अग्नि में आहुति देना। चाहता है तो उसे ठीक ढंग से बैठकर षपथ के तौर पर आहुति देनी चाहिए तथा हवन के समीप बैठकर पाहल लेकर यह दृढ संकल्प कर लेना चाहिए कि मैं आगे भविश्य में इन पाप कर्मो को कभी नहीं करूंगा।

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