अमावस्या का व्रत करना चाहीये। अर्थात्
निराहार रहकर उपवास करना चाहिये। उप-समीप, वास-निवास-आवस अर्थात् परमात्मा के समीप
रहना चाहियें अमावस्या के दिन ऐसे ही कार्य करने चाहिये जो परमात्मा के पास में ही
बिठाने वाले हो, सांसरिक खेती-बाडी व्यापार आदि कर्म तो परमात्मा से दूर हटाने वाले
है। और संध्या हवन, सत्संग, परमात्मा का स्मरण ध्यान कर्म परमात्मा के पास बैठाते
हैं इसलिए महीने में एक दीन उपवास करना चाहिये। और वह दिन अमावस्या का ही श्रेश्ठ
मान्य हैं । क्योंकि सुर्य और चन्द्रमा ये दोनों शक्तिशाली ग्रह अमावस्या के दिन एक
राषि में आ जाते हैं अर्थात चन्द्र जब तक दोनो एक राषि में रहते हैं तब तक ही
अमावस्या रहती हैं। चन्द्रमा सुर्य के सामने निस्तेज हो जाता हैं। अर्थात चंन्द्र
की किरणें नश्ट प्रायः हो जाती हैं। संसार में भयंकर अन्धकार छा जाता है। चन्द्रमा
ही सभी औषधियों को रस देने वाला हैं जब चन्द्रमा ही पुर्ण प्रकाशक नहीं होगा तो
औषधी भी निस्तेज हो जायेगी। ऐसयी निस्तेज अन्न, बल, वीर्य, बुध्दि वर्धक नहीं हो
सकता किन्तु बल वीर्य बुध्दि आदि को मलीन करने वाला ही होगा। इसलिये अमावस्या का
व्रत करना चाहिये उस दिन अन्न खाना निशेध किया गया हैं और व्रत का विधान किया गया
हैं।
एकादषी या सोम,रवि आदि वार तिथियां तो अति षीघ्र सप्ताह में एक बार या महीनें में कोई बार आ जाते हैं। साधारण किसान लोग परिश्रम करने वाले इतना कहॉं पर पाते हैं। ये सभी व्रत तो होना असंभव हैं किन्तु अमावस्या तो महीनें में एक बार ही आती हैं। सभी कार्यो को छोड कर तीस दिनों में एक दिन तो पुर्णतया परमात्मा के अर्पण कर सकते ह। । इससे सुविधा भी तथा सुलभता भी है। वेदों में भी कहा गया हैं - दर्षपौर्णमास्यायां यजेत् अर्थात अमावस्या और पूर्णमासी को निष्चित ही यज्ञ करें। वेदों में भी एकादषी या अन्य किसी व्रतों उपवासों का कोई वर्णन नहीं आया।
व्रत करने से आध्यात्मिक लाभ तो होगा ही साथ में भौतिक लाभ भी होगा। हम लोग रात दिन समय बिना समय भूखे हो या न भी हो तो भी खाते ही रहते हैं। शरीरस्थ अग्नि को ज्यादा भोजन डाल क रमंद कर देते हैं वह मंद अग्नि भोजन को पुर्णतया पचा नहीं सकती। इसलिए अनेकानेक बीमारीयां बढ जाती हैं, फिर डाथ्टरों के पास चक्कर लगाना पडता हैं । इन समस्याओं का समाधान भी व्रत करने से हो जाता हैं। और यदि रोज-रोज नये व्रत करोंगे ततो पेट में भुखा रहते-रहते अग्नि स्वयं बुझ जायेगी । फिर भोजन डालने से प्रज्वलीत नहीं हो सकेगी और यदि महीनें मे एक बार ही अमावस्या का व्रत करते हैं तो स्वास्थ्य का संतुलन ठीक से चलता रहेंगां यह भी अमावस्या व्रत का फल है।
वेदों में अमावस्या का महत्व बताया गया हैं। उसके पष्यात किसी संत महापुरूष ने अमावस्या का व्रत करना नहीं बताया। प्रथम वार श्री गुरू जाम्भेष्वर महाराज ने ही कहा है कि अमावस्या का व्रत करो। इसमें बहुत बडा रहस्य छुपा हुबा हैं यह एक प्रथम से अन्वेषण का विषय है। अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राषि में रहे, तब तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करना चाहिये। उस दिन तो केवल परमात्मा का भजन ही करना चाहिए। अमावस्या व्रत का फल भी षास्त्रों में बहुत ही ऊंचा बतलाया है। यह व्रत कथा जम्भसार तथा अमावस्या व्रत कथा में प्रकाषित हो चुकी है। जाम्भा पुराण में यह कथा सरल हिन्दी भाशा में लिखी जा चुकी हैं। आप स्वयं पढे तथा अन्य जनों को सुनाने से अमावस्या महत्व का ज्ञान होता है। तथा ज्ञान से श्रध्दा बढती हैं, श्रध्दा से व्रत सुरूचि पूर्वक किया जाता हैं।
अमावस्या का व्रत
एकादषी या सोम,रवि आदि वार तिथियां तो अति षीघ्र सप्ताह में एक बार या महीनें में कोई बार आ जाते हैं। साधारण किसान लोग परिश्रम करने वाले इतना कहॉं पर पाते हैं। ये सभी व्रत तो होना असंभव हैं किन्तु अमावस्या तो महीनें में एक बार ही आती हैं। सभी कार्यो को छोड कर तीस दिनों में एक दिन तो पुर्णतया परमात्मा के अर्पण कर सकते ह। । इससे सुविधा भी तथा सुलभता भी है। वेदों में भी कहा गया हैं - दर्षपौर्णमास्यायां यजेत् अर्थात अमावस्या और पूर्णमासी को निष्चित ही यज्ञ करें। वेदों में भी एकादषी या अन्य किसी व्रतों उपवासों का कोई वर्णन नहीं आया।
व्रत करने से आध्यात्मिक लाभ तो होगा ही साथ में भौतिक लाभ भी होगा। हम लोग रात दिन समय बिना समय भूखे हो या न भी हो तो भी खाते ही रहते हैं। शरीरस्थ अग्नि को ज्यादा भोजन डाल क रमंद कर देते हैं वह मंद अग्नि भोजन को पुर्णतया पचा नहीं सकती। इसलिए अनेकानेक बीमारीयां बढ जाती हैं, फिर डाथ्टरों के पास चक्कर लगाना पडता हैं । इन समस्याओं का समाधान भी व्रत करने से हो जाता हैं। और यदि रोज-रोज नये व्रत करोंगे ततो पेट में भुखा रहते-रहते अग्नि स्वयं बुझ जायेगी । फिर भोजन डालने से प्रज्वलीत नहीं हो सकेगी और यदि महीनें मे एक बार ही अमावस्या का व्रत करते हैं तो स्वास्थ्य का संतुलन ठीक से चलता रहेंगां यह भी अमावस्या व्रत का फल है।
वेदों में अमावस्या का महत्व बताया गया हैं। उसके पष्यात किसी संत महापुरूष ने अमावस्या का व्रत करना नहीं बताया। प्रथम वार श्री गुरू जाम्भेष्वर महाराज ने ही कहा है कि अमावस्या का व्रत करो। इसमें बहुत बडा रहस्य छुपा हुबा हैं यह एक प्रथम से अन्वेषण का विषय है। अमावस्या के समय जब तक सूर्य चन्द्र एक राषि में रहे, तब तब कोई भी सांसरिक कार्य जैसे-हल चलाना, कसी चलाना, दांती, गंडासी, लुनाई, जोताई, आदि तथा इसी प्रकार से गृह कार्य भी नहीं करना चाहिये। उस दिन तो केवल परमात्मा का भजन ही करना चाहिए। अमावस्या व्रत का फल भी षास्त्रों में बहुत ही ऊंचा बतलाया है। यह व्रत कथा जम्भसार तथा अमावस्या व्रत कथा में प्रकाषित हो चुकी है। जाम्भा पुराण में यह कथा सरल हिन्दी भाशा में लिखी जा चुकी हैं। आप स्वयं पढे तथा अन्य जनों को सुनाने से अमावस्या महत्व का ज्ञान होता है। तथा ज्ञान से श्रध्दा बढती हैं, श्रध्दा से व्रत सुरूचि पूर्वक किया जाता हैं।